New Deposit Insurance Limit: डिपॉजिट इंश्योरेंस ₹5 से ₹10 लाख करने की तैयारी, जानें इसका बैंकों और आप पर क्या पड़ेगा असर

New Deposit Insurance Limit: सरकार डिपॉजिट इंश्योरेंस कवर को ₹5 लाख से ₹10 लाख करने पर विचार कर रही है. जानिए इस कदम का प्रभाव बड़े बैंकों, सहकारी बैंकों और जमाकर्ताओं पर किस तरह पड़ेगा.

 
New Deposit Insurance Limit

New Deposit Insurance Limit: भारत सरकार देश में डिपॉजिटर्स के विश्वास को और मजबूत करने के लिए डिपॉजिट इंश्योरेंस की सीमा ₹5 लाख से बढ़ाकर ₹10 लाख करने पर विचार कर रही है. यह कदम हाल ही में न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक के पतन के बाद उठाया जा रहा है, जिसने बैंकिंग प्रणाली में जमा किए गए छोटे निवेशकों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है.

न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक संकट- एक चेतावनी

फरवरी 2025 में न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक के धराशायी होने ने हजारों जमाकर्ताओं (Depositors) को असमंजस में डाल दिया. बैंक के वित्तीय कुप्रबंधन और नियमों के उल्लंघन के कारण लोग अपनी जमापूंजी पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस घटना ने 2019 के पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव (PMC) बैंक घोटाले की याद ताजा कर दी, जहां छिपाए गए भारी बैड लोन के कारण जमाकर्ताओं को भारी नुकसान हुआ था.

PMC बैंक संकट के बाद सरकार ने 2020 में डिपॉजिट इंश्योरेंस कवर को ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹5 लाख कर दिया था. लेकिन न्यू इंडिया कोऑपरेटिव बैंक के पतन ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया कि क्या ₹5 लाख की सीमा पर्याप्त है?

सीमा बढ़ाने पर बैंकों की आपत्ति

अगर सरकार डिपॉजिट इंश्योरेंस को ₹10 लाख तक बढ़ाती है, तो सभी बैंकों को उच्च प्रीमियम का भुगतान करना होगा. यह उन बड़े सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए चिंता का विषय बन गया है, जो मजबूत पूंजी आधार के साथ अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं.

बड़े बैंक यह तर्क दे रहे हैं कि चूंकि उनकी जोखिम प्रोफाइल कम है, इसलिए उन्हें छोटे और जोखिम भरे बैंकों के बराबर प्रीमियम क्यों देना चाहिए. इसके समाधान के लिए "रिस्क बेस्ड प्रीमियम मॉडल" की चर्चा चल रही है, जिसमें जोखिम वाले बैंकों से ज्यादा प्रीमियम लिया जाएगा और सुरक्षित बैंकों से कम.

सहकारी बैंकों और मोरल हैज़र्ड का खतरा

एक्सपर्ट्स ने एक और गंभीर चिंता जताई है: मोरल हैज़र्ड यानी नैतिक जोखिम, अगर डिपॉजिट इंश्योरेंस कवर बढ़ा दिया जाता है, तो जमाकर्ता उच्च ब्याज देने वाले असुरक्षित बैंकों में पैसे जमा करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें लगेगा कि उनका पैसा पूरी तरह सुरक्षित है.

आगे का रास्ता

सरकार के सामने अब बड़ी चुनौती है कि वह जमाकर्ताओं (Depsotiors) की सुरक्षा को मजबूत करने और बैंकों की वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने के बीच संतुलन कैसे साधे.

रिस्क बेस्ड प्रीमियम मॉडल लागू करना एक संभावित समाधान हो सकता है, ताकि जोखिम ज्यादा उठाने वाले बैंकों पर अधिक वित्तीय भार पड़े और सुरक्षित बैंकों को राहत मिले.

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